November 18, 2025

CG : भारतमाला प्रोजेक्ट घोटाले में बड़ा झटका, हाईकोर्ट ने खारिज की राजस्व अधिकारियों की अग्रिम जमानत याचिका

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बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने मंगलवार को भारतमाला परियोजना घोटाले से जुड़े राजस्व विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों को बड़ा झटका दिया है। चीफ जस्टिस रमेशचंद्र सिन्हा की सिंगल बेंच ने सभी आरोपियों की अग्रिम जमानत याचिकाएं खारिज कर दी हैं। ये सभी अधिकारी आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो (EOW) और भ्रष्टाचार निवारण ब्यूरो (ACB) द्वारा दर्ज भ्रष्टाचार के मामले में आरोपित हैं।

क्या है भारतमाला प्रोजेक्ट घोटाला
रायपुर–विशाखापट्टनम के बीच बन रही भारतमाला परियोजना में भूमि अधिग्रहण के दौरान राजस्व अधिकारियों पर भूमाफिया से मिलीभगत के आरोप लगे हैं। जांच में सामने आया कि अधिकारियों ने कई किसानों और भू-मालिकों को वास्तविक बाजार मूल्य से कई गुना ज्यादा मुआवजा राशि दिलवाई। इस हेराफेरी से सरकार को करीब 600 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है।

जमानत याचिकाएं हुईं खारिज
मंगलवार को हाई कोर्ट ने आरोपित अधिकारियों की अग्रिम जमानत याचिकाओं पर सुनवाई की। जिन अधिकारियों की याचिकाएं खारिज हुई हैं, उनमें तत्कालीन एसडीएम निर्भय कुमार साहू, लेखराम देवांगन, लखेश्वर प्रसाद किरतन, शशिकांत कुर्रे, डीएस उइके, रोशन लाल वर्मा और दीपक देव शामिल हैं। कोर्ट ने कहा कि यह मामला गंभीर आर्थिक अनियमितताओं और भ्रष्टाचार से जुड़ा है, जिसकी जांच अभी जारी है। ऐसे में आरोपियों को अग्रिम जमानत देने से जांच प्रभावित हो सकती है।

EOW-ACB ने पेश किया था 8 हजार पेज का चालान
इस घोटाले में EOW-ACB ने हाल ही में जिला विशेष अदालत में करीब 8,000 पेज का चालान पेश किया था। इसमें भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया में हुई कथित हेराफेरी, मुआवजा वितरण में गड़बड़ी और लेनदेन से जुड़ी वित्तीय अनियमितताओं के सबूत शामिल हैं।

राज्य सरकार ने किया सभी को निलंबित
मामले के उजागर होने के बाद राज्य सरकार ने तत्काल प्रभाव से सभी आरोपित अधिकारियों और कर्मचारियों को निलंबित कर दिया है। बताया जा रहा है कि जांच एजेंसियां अब फंड ट्रेल और निजी संपत्ति की भी जांच कर रही हैं, ताकि यह पता लगाया जा सके कि सरकारी राशि किन माध्यमों से बाहर भेजी गई।

हाई कोर्ट ने कहा कि यह मामला न केवल सरकारी धन की हानि से जुड़ा है, बल्कि जनता के विश्वास को ठेस पहुंचाने वाला भी है। जब तक जांच पूरी नहीं हो जाती, आरोपितों को किसी तरह की राहत नहीं दी जा सकती।

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