May 4, 2024

राज्य के पास नहीं है नया कानून बनाने का अधिकार- संजीव कुमार बालयान

रायपुर।  केंद्रीय राज्यमंत्री (पशुपालन, डेयरी और मत्स्यपालन) संजीव कुमार बालयान बुधवार को छत्तीसगढ़ दौरे पर रहे. बालयान भारतीय जनता पार्टी कार्यालय में आयोजित कार्यक्रम में शामिल हुए. प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान केंद्रीय राज्यमंत्री ने मोदी सरकार की ओर से लाए गए नए कृषि कानून और महिलाओं पर बढ़ते अत्याचार जैसे मुद्दों पर चर्चा की. 


केंद्रीय राज्यमंत्री संजीव कुमार ने कहा कि कृषि कानून कृषि और किसान के हित में है. आजादी के इतने साल बाद भी किसानों को यह अधिकार नहीं दिया गया था कि वह अपने जनपद पंचायत इलाके से बाहर भी अपना धान बेच सकें. जबकि किसानों का भी ये हक होना चाहिए कि वह अपना धान कहीं भी बेच सकें. सभी राजनीतिक पार्टियां इस कानून के समर्थन में थी. इसे लेकर कांग्रेस और बीजेपी के घोषणा पत्र में ये बात थी कि किसानों के हक के लिए कानून बनाया जाए.


APMC एक्ट में संशोधन को लेकर उन्होंने कहा कि पूरे देश में अलग-अलग तरह की भ्रांतियां फैलाई जा रही है. सबसे पहली बात ये है कि इसे MSP से जोड़ा जा रहा है. APMC और MSP दोनों एक दूसरे से अलग हैं. ये प्रदेश का विषय था. ये APMC एक्ट और मंडियां वैसी ही रहेंगी. उनमें इस बिल के बाद कोई बदलाव नहीं है. इसमें सिर्फ इतना बदलाव रहेगा कि धान मंडियां रहेंगी, मंडी में धान की खरीदारी होगी. लेकिन मंडी से बाहर अगर कोई धान बेचना चाहता है, तो किसान किसी कोल्ड स्टोरेज से, किसी गोदाम से खरीद-फरोख्त कर सकता है. यह अतिक्रमण नहीं है, ये APMC एक्ट में संशोधन है. मंडियां जारी रहेंगी. मंडियों में खरीदी होती रहेंगी.


केंद्रीय राज्यमंत्री संजीव कुमार बालयान ने कहा कि छत्तीसगढ़ सरकार इस बात को बताए कि अगर केंद्र सरकार को MSP बंद करना होता तो छत्तीसगढ़ को बढ़ाकर क्यों देते. उन्होंने कहा कि ये मंडी कानून में संशोधन है एमएसपी में नहीं. 

छत्तीसगढ़ में राज्य का कृषि कानून लाने के मामले में केंद्रीय राज्य मंत्री ने कहा कि प्रदेश सरकार को ऐसा कानून लाने का कोई अधिकार नहीं है. कृषि उत्पाद का इंटरस्टेट मूवमेंट संविधान के सेंट्रल लिस्ट में है. उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल इस मुद्दे पर राजनीति कर रहे हैं. वे जवाब दें कि कांग्रेस की घोषणा पत्र में किसान के अधिकार के लिए कानून बनाए जाने की बात थी कि नहीं. अगर उनकी घोषणा पत्र में ये बात थी, तो उन्हें इस कानून का विरोध करने का कोई अधिकार नहीं है. उन्होंने कहा कि प्रदेश की कांग्रेस सरकार यहां के किसानों को घूमाना चाहती है और लोगों को बहका रही है. 

केंद्रीय राज्यमंत्री ने कहा कि पूरे देश में अगर वर्तमान में 7 हजार धान मंडियां हैं, तो उनमें से करीब 1 हजार मंडी ऐसी है जो ई-मार्केटिंग से जोड़ी जा चुकी है. ई-मार्केटिंग से अगर मंडियों को जोड़ा जा रहा है तो ढील भी देनी पड़ेगी. सामान के उत्पाद एक तरफ से दूसरी तरफ जाने के लिए कानून में परिवर्तन करना पड़ेगा. पूरे देश में करीब 8600 करोड़ रुपए मंडी टैक्स के रूप में आते हैं. इस राशि से करीब 8 हजार रुपए, जो केंद्र सरकार धान और गेहुं की खरीद कराती है या अन्य किसी कृषि उत्पाद की खरीद कराती है उसका टैक्स है. ये केंद्र देती है. अलग-अलग प्रदेश में अलग-अलग टैक्स की दरें हैं.उन्होंने कहा कि जहां तक खरीद की बात है, तो केंद्र सरकार खरीदी कराती है. केंद्र खरीद गेहुं और चावल खरीदती है, जिसका पैसा FCI से आता है. प्रदेश सरकार की एक नोडल एजेंसी है, जो चावल और गेहूं की खरीदी कर केंद्र सरकार को सप्लाई करती है. प्रदेश सरकार को इसका अधिकार है कि वह कहीं से भी खरीदी कर सकती है. केंद्र सरकार को सिर्फ पैसा देना है. इसमें कुछ भी अतिक्रमण जैसा नहीं है. केंद्र सरकार अपनी पूरी जिम्मेदारी निभाने के लिए तैयार है.

केंद्रीय राज्यमंत्री संजीव कुमार ने बताया कि दूसरे बिल को कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग का नाम दिया गया है. अभी कोविड के दौरान ही 1 लाख रुपए का एग्रीकल्चर डेवल्पमेंट एंड इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए फंड दिया गया है. करीब 20 हजार करोड़ मत्स्य पालन के लिए किया गया. करीब 15 हजार करोड़ पशुपालन के लिए डेवल्पमेंट एंड इंफ्रास्ट्रक्चर फंड है. करीब साढ़े 13 हजार रुपए का FMD . इन तमाम योजनाओं के तहत जारी फंड को देखा जाए तो किसानों के लिए बड़ी रकम दी गई है.

एग्रीकल्चर इंफ्रास्ट्रक्चर तब डेवलप होगा जब एक व्यापारी या उद्योगपति को छूट होगी. खरीदी करने की छूट. देश में प्रोसेसिंग इंडस्ट्री की बहुत कमी है. आज अगर हम अपना एक्सपोर्ट बढ़ाना चाहते हैं, तो प्रोसेसिंग पर जाना होगा. प्रोसेसिंग पर न जाने का एक बहुत बड़ा कारण है कि किसान से उत्पाद सीधा कोई व्यापारी नहीं खरीद सकता. बीच में बिचौलियों की लंबी चैन थी. आज ये अधिकार दिया गया कि किसान और प्रोसिसिंग करने वाला व्यापारी एक साथ जुड़ सके.5 साल तक के लिए कृषि उत्पाद का किसी व्यापारी और किसी किसान के बीच में एग्रीमेंट हो सकता है. उस एग्रीमेंट की एक स्पष्ट बात है कि किसान चाहे, तो एग्रीमेंट से बाहर निकल सकता है. बशर्ते कि व्यापारी से जो पैसा एडवांस में लिया गया है, उसे वापस दे दें. लेकिन व्यापारी एग्रीमेंट से बाहर नहीं जा सकता. 3 दिन या 72 घंटे के अंदर किसान के पेमेंट का प्रावधान भी इन कानूनों में हैं. कहीं अगर किसान और व्यापारी के बीच डिस्प्यूट होता है तो, SDM कोर्ट में ही सुनवाई होगी. किसान को हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी. 

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