नईदिल्ली। मैक्सिको में इस रविवार को इतिहास रचने जा रहा है. पहली बार देश में जज, मजिस्ट्रेट और सुप्रीम कोर्ट के जजों को जनता चुनने जा रही है. इसे अदालतों को लोकतांत्रिक बनाने की दिशा में बड़ा कदम बताया जा रहा है. लेकिन ये चुनाव जितना अनोखा है, उतना ही विवादित भी. आलोचक कह रहे हैं कि इससे अदालतें राजनीतिक और आपराधिक दबाव में आ सकती हैं.
प्यू रिसर्च सेंटर के सर्वे के मुताबिक, 66% मैक्सिकन लोग इस न्यायिक रिफॉर्म का समर्थन कर रहे हैं. खासकर युवा और मोरेना समर्थक इसे बेहतर मानते हैं. हालांकि विपक्षी पार्टियां और नागरिक समूह इसे लोकतंत्र का मज़ाक बता रहे हैं और बॉयकॉट की अपील कर रहे हैं.
क्या है ये नया सिस्टम
अब तक मैक्सिको में सुप्रीम कोर्ट के जज राष्ट्रपति की ओर से नामित और सीने की तरफ से अनुमोदित किए जाते थे. वहीं अन्य जजों का चयन मेरिट के आधार पर होता था. लेकिन अब संविधान में हुए बदलाव के बाद जनता सीधे वोटिंग करके जजों का चुनाव करेगी. करीब 900 फेडरल पदों और 19 राज्यों में 1800 से ज्यादा स्थानीय न्यायिक पदों पर चुनाव होंगे. सुप्रीम कोर्ट की सभी 9 सीटें भी वोटिंग में शामिल हैं. ये प्रक्रिया दो चरणों में होगी पहला चरण 2025 में और दूसरा 2027 में.
रिफॉर्म का मकसद या राजनीति?
पूर्व राष्ट्रपति आंद्रेस मैनुएल लोपेज ओब्राडोर ने अपने कार्यकाल के अंत में इस बदलाव को मंजूरी दी थी. उनका दावा था कि इससे अदालतों में जवाबदेही बढ़ेगी और जनता को न्यायिक प्रक्रिया में हिस्सेदारी मिलेगी. लेकिन विरोधियों का कहना है कि ये सब ओब्राडोर की पार्टी मोरेना की सत्ता को और मजबूत करने की कोशिश है. क्योंकि कोर्ट अक्सर उनके प्रस्तावों को खारिज करती रही है. अब अगर जज भी जनता के वोट से चुनेंगे, तो उन पर राजनीतिक प्रभाव डालना आसान हो सकता है.
कैसे चलेगा चुनाव, और किसे मिलेगा मौका?
कोई भी राजनीतिक पार्टी किसी उम्मीदवार को नामांकित या समर्थन नहीं कर सकती. उम्मीदवारों को खुद ही चुनाव प्रचार का खर्च उठाना होगा. टीवी-रेडियो पर विज्ञापन बैन है, लेकिन सोशल मीडिया और इंटरव्यू की छूट है. एक नया Judicial Disciplinary Tribunal भी बनाया गया है जो जजों पर निगरानी रखेगा और ज़रूरत पड़ने पर उन्हें सस्पेंड या बर्खास्त कर सकेगा.
गड़बड़ी की आशंका क्यों है?
हालांकि नियमों में पार्टियों की भूमिका पर रोक है, लेकिन स्थानीय मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक कुछ नेताओं ने गुप्त तरीके से वोटिंग लिस्ट बांटी हैं.राष्ट्रीय चुनाव संस्थान ऐसे दो मामलों की जांच भी कर रहा है. विशेषज्ञों की मानें तो अगर तीनों सरकारी शाखाओं (कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका) पर एक ही पार्टी का कब्जा हो, तो वो उम्मीदवारों की चयन प्रक्रिया को प्रभावित कर सकती है.
माफिया का डर भी बना हुआ है
मानवाधिकार संगठनों ने चेतावनी दी है कि अपराधी समूह खासकर स्थानीय स्तर पर इन चुनावों को प्रभावित कर सकते हैं. पहले भी माफिया ने विरोधी नेताओं को धमकाया या मार दिया है. इस साल भी अब तक कई राजनीतिक हमले दर्ज हुए हैं. कुछ उम्मीदवारों पर भी सवाल हैं. एक उम्मीदवार अमेरिका में ड्रग तस्करी के आरोप में 6 साल जेल में रह चुका है. एक और उम्मीदवार एल चापो के वकील रह चुके हैं.