May 10, 2024

सुनंदा मामले में कोर्ट ने अर्नब की समानांतर जांच पर आपत्ति जताई, संयम बरतने के दिए निर्देश

नई दिल्ली। दिल्ली हाईकोर्ट ने कांग्रेस नेता शशि थरूर की पत्नी सुनंदा पुष्कर की मौत के मामले में समानांतर जांच और सुनवाई को लेकर गुरुवार को अर्नब गोस्वामी से सवाल किया तथा उन्हें संयम बरतने के अपने हलफनामे का पालन करने का निर्देश दिया। इसके साथ अदालत ने उनसे मामले की खबर दिखाते समय बयानबाजी नहीं करने को कहा। न्यायमूर्ति मुक्ता गुप्ता ने कहा कि अदालत यह नहीं कह रही है कि कोई भी मीडिया को नियंत्रित करेगा लेकिन जांच की पवित्रता को बनाए रखना होगा।

अदालत ने कहा, ‘कृपया संयम दिखाएं। जब आपराधिक मामले में पुलिस की जांच चल रही है, तो मीडिया द्वारा समानांतर जांच नहीं की जा सकती है। इसके साथ ही उन्होंने टिप्पणी की कि लोगों को आपराधिक सुनवाई का कोर्स करने के बाद पत्रकारिता में आना चाहिए। उच्च न्यायालय ने एक दिसंबर 2017 के आदेश का हवाला दिया जिसमें कहा गया था कि प्रेस किसी को दोषी नहीं ठहरा सकता है या इस बात का संकेत नहीं कर सकता है कि अमुक दोषी है या कोई अपुष्ट दावा कर सकता है। जांच या लंबित मुकदमे के बारे में खबर देते समय प्रेस को सावधानी बरतनी होगी।

वर्ष 2017 के आदेश में उल्लेख किया गया है कि पत्रकार और चैनल के वकील ने अदालत को आश्वासन दिया है कि भविष्य में वे संयम बरतेंगे। अदालत ने कहा, ‘प्रतिवादी (गोस्वामी और उनके चैनल) को निर्देश दिया जाता है कि वे अपने वकील और उनकी ओर से दिए गए बयान से, सुनवाई की अगली तारीख तक बंधे हों।’     

चैनल के इस दावे पर कि उनके पास सबूत हैं, अदालत ने सवाल किया, ”क्या आप घटनास्थल पर थे? क्या आप चश्मदीद गवाह हैं? जांच से कुछ पवित्रता जुड़ी होती है।’ गोस्वामी की ओर से पेश वकील मालविका त्रिवेदी ने इस पर कहा कि एम्स से सबूत मिले थे, जिसके आधार पर कुछ प्रसारण किए गए थे।

अदालत कांग्रेस सांसद शशि थरूर द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें रिपब्लिक टीवी के प्रधान संपादक गोस्वामी पर अंतरिम रोक का अनुरोध किया गया है। थरूर की शिकायत जुलाई और अगस्त में टीवी चैनल पर प्रसारित कार्यक्रमों से संबंधित है। उनमें दावा किया गया है कि उन्होंने सुनंदा पुष्कर मामले की पुलिस से बेहतर जांच की है और उन्हें अब भी संदेह नहीं है कि पुष्कर की हत्या हुई थी।

थरूर की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ताओं कपिल सिब्बल और विकास पाहवा ने कहा कि मामले में पुलिस द्वारा आरोपपत्र दायर किया गया है और उन्हें आत्महत्या के लिए कथित तौर पर उकसाने के संबंध में बुलाया गया है। ऐसे में पत्रकार कैसे आरोप लगा सकते हैं कि यह हत्या थी। अधिवक्ता गौरव गुप्ता और मुहम्मद ए खान के माध्यम से दायर याचिका में अनुरोध किया गया है कि पत्रकार को केवल उन मामलों में रिपोर्ट करने के लिए निर्देश दिया जाना चाहिए जो तथ्यात्मक रूप से सही हैं या स्थापित हैं। अदालत ने थरूर की याचिका पर पत्रकार से जवाब मांगा और मामले को 20 नवंबर को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया।

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