रायपुर/महासमुंद/बेमेतरा/गरियाबंद/दुर्ग/धमतरी। छत्तीसगढ़ में नए शैक्षणिक सत्र की शुरुआत हो चुकी है. शाला प्रवेश उत्सव काफी धूमधाम से मनाया जा रहा है. कई जगहों पर मंत्री खुद बच्चों के स्वागत के लिए विद्यालयों में जा रहे हैं. संभव है कि छत्तीसगढ़ में ट्रिपल इंजन से चल रही सरकार नरेंद्र मोदी के उसे नारे से जरूर प्रेरित होगी. जिसमें कहते थे “पढ़ेगा भारत तभी तो बढ़ेगा भारत”. लेकिन सूबे में राजधानी सहित ज्यादातर जिलों में शिक्षा व्यवस्था का हाल बेहाल हैं। राजधानी में तो कई स्कूल युक्तियुक्तकरण के बाद एक तरह से खाली हो गए हैं। अध्यापन व्यवस्था और व्याख्याताओं की कमी को लेकर बच्चे और पालक आक्रोशित है। कहीं बच्चे टीसी लेकर अन्यत्र जा रहे हैं तो कहीं उपस्थिति कम होती जा रही हैं। कुछ जगहों पर तो शिक्षकों और छात्रों में अध्यापन को लेकर विवाद की भी खबर हैं। कुछ स्कूलों में अलग तरह की समस्याएं हैं। गरियाबंद में तो तालाबंदी कर प्राचार्य को हटा कर ही बच्चे माने।
इसी तरह से यह नारा राज्य में भी लागू होता है कि ” पढ़ेगा छत्तीसगढ़ तभी बढ़ेगा छत्तीसगढ़” लेकिन यह सारी बातें किताबों में पढ़ने और नेताओं के नारों में सिमट के रह जाती है. जमीनी हकीकत तो यह है कि कही जमीन है, तो छत नहीं और छत है तो उसके ऊपर देखने में डर लगता है. एक नहीं कई जिलों में हालत यही है. जनरपट ने जब ऐसे विद्यालयों की पड़ताल की तो जो चीज निकल कर आई हैं. वह आप भी जान लीजिए

सूबे के धमतरी जिले के नाथूकोन्हा सरकारी स्कूल की गजब कहानी है. यहां पर कक्षा 5 तक के क्लास संचालित होते हैं. लेकिन पढ़ने वाले बच्चों की संख्या महज तीन है. यहां पढ़ाने वाले अध्यापकों की संख्या 2 है. अगर यहां पर मास्टर साहब की बात करें तो 10 से 12 लख रुपए इस विद्यालय पर खर्च हो रहे हैं. वहीं युक्तियुक्तकरण का फायदा जरूर सरकार गिना रही है।
धमतरी जिला मुख्यालय से 5 किलोमीटर दूर इस गांव के बेंद्रानवागांव माध्यमिक शाला में पदस्थ हेड मास्टर को वापस बुलाए जाने को लेकर के यहां पर विरोध प्रदर्शन हुआ. लोगों ने विद्यालय में ताला बंद कर दिया. लोगों ने अपना विरोध भी जताया. धमतरी में 16 जून से प्रवेश उत्सव शुरू हुआ तो बेंद्रानवागांव प्राइमरी और मिडिल स्कूल में तालाबंदी भी शिक्षक को वापस बुलाने की मांग पर की गई. परिजनों का कहना है कि विद्यालय में बच्चों के भविष्य पर खतरा है. सरकार की लापरवाही के कारण कक्षा दसवीं का रिजल्ट खराब हो गया. लगातार कहे जाने के बाद भी इसमें कोई ख़ास परिवर्तन नहीं आया है.
शिक्षा व्यवस्था के लिए बहुत कुछ करने की बात कहने वाली सरकार के सामने जो हकीकत है उसे ना तो अधिकारी समझने को तैयार हैं और न ही राजनेता समझने को तैयार हैं. बात कांकेर की करें तो साल 1994 में एक ऐसा विद्यालय है जो झोपड़ी में खड़ा हुआ. कांकेर जिले के गांडागौरी गांव में प्राथमिक स्कूल साल 1974 में बना. उस समय स्कूल खपरैल का हुआ करता था. उसके 50 साल बाद भी स्कूल की स्थिति जस की तस है.
गांडागौरी गांव के प्राथमिक स्कूल की मरम्मत नहीं हुई: हालत यह है की 10 साल से इसका मरम्मत का कार्य अधूरा पड़ा हुआ है. हालांकि जब कांकेर के जिला शिक्षा अधिकारी से यह बातें पूछी गई तो उन्होंने कहा कि हमारे पास पर्याप्त बजट है. मरम्मत करवाया जाएगा और जैसे ही नए भवन की स्वीकृति मिलेगी हम उस काम को भी करवा देंगे. हालात अब यह है कि एक और शैक्षणिक सत्र शुरू हो गया. बस नहीं हो पाया तो शिक्षा विभाग का रुका हुआ काम.

महासमुंद जिले का हाल भी ऐसा ही है. यहां युक्तियुक्तकरण के बाद शिक्षकों के ट्रांसफर का विरोध और उसे रोकने के लिए दखल हो. इसको लेकर के बातें होती रही हैं. वहीं जिले की बात करें तो 45 ऐसे अति जर्जर स्कूल अभी भी हैं. जिसको लेकर के कुछ नहीं किया गया. खमतराई स्कूल इतना जर्जर है कि कभी भी बड़ा हादसा हो सकता है. विद्यालय के सभी शिक्षक से लेकर के आम लोग भी इस बात को कहते हैं.
खमतराई स्कूल की निर्माण साल 2003-04 में हुआ था. महज 20 साल बाद ही इस बिल्डिंग में दरार पड़ गई. सरकार के ईमानदार निर्माण की कहानी विद्यालय में पड़ी दरारें साफ-साफ बता रही हैं कि ईमानदारी के बीच कौन सी ऐसी लकीर खींची गई थी जिसे बेईमानी की दरार इस विद्यालय में खड़ी कर दी है. खिलवाड़ नौनिहालों के साथ है. बच्चे आज भी इस स्कूल में पढ़ने को विवश हैं. दीवार कभी भी गिर सकती है.

स्कूल खुलने से पहले शासन की ओर से जो निर्देश आया था. उसके तहत वैकल्पिक व्यवस्था करने के लिए विकास खंड शिक्षा अधिकारी को बोला जा चुका है. कक्षा जर्जर भवन में नहीं लगानी है. भले ही कक्षा दो पालियों में चलानी पड़े. मामला साफ है कि 20 साल में बने विद्यालय जर्जर हो गए हैं ,तो संभव है की जर्जर होती शिक्षा व्यवस्था इसी के आसपास खड़ी है.- विनय कुमार लहरों, जिला शिक्षा अधिकारी
बेमेतरा जिले में यहां के बच्चों ने शिक्षकों की मांग लेकर के मिडिल हाई स्कूल के गेट पर ताला जड़ दिया. विरोध प्रदर्शन को देखते हुए बेमेतरा के तहसीलदार को वहां जाना पड़ा. उन्होंने बच्चों से जल्द शिक्षा व्यवस्था को ठीक करने का आश्वासन दिया. छात्रों का कहना है कि साइंस सब्जेक्ट लिया गया है, लेकिन स्कूल में केमिस्ट्री के टीचर ही नहीं है. बायोलॉजी पढ़ाने वाली टीचर केमिस्ट्री पढ़ा रही हैं, तो ऐसे में बच्चों के भविष्य का क्या होगा.

यह बड़ा मामला है हालांकि इस बात को जिला शिक्षा अधिकारी ने माना भी है. उन्होंने कहा कि विद्यालय में दो विषयों के शिक्षकों की कमी है. जिसकी जल्द भरपाई की जाएगी. सवाल यही है की मुख्यमंत्री कह रहे हैं पढ़िए, बाकी मेरे ऊपर छोड़ दीजिए, तो केमिस्ट्री कौन पढ़ाएगा इसकी जानकारी कौन देगा या इसे कब तक छोड़ दिया जाए.
बात राजधानी रायपुर से सटे स्टील सिटी दुर्ग भिलाई की. यहां पर पूरा स्कूल ही दिव्यांग शिक्षक के भरोसे छोड़ दिया गया है . दुर्ग जिले के धमधा ब्लॉक से करीब 30 किलोमीटर दूर कॉमर्स की छात्राएं पढ़ाई के लिए संघर्ष कर रही हैं. आलम यह है की ग्राम धनोरा के प्राथमिक विद्यालय में कक्षा 11 में पढ़ने के लिए सिर्फ एक शिक्षक हैं. और वह भी विकलांग है . वे ब्लैक बोर्ड पर जाकर पढ़ा नहीं सकते. हालांकि उसके बाद भी हालत जर्जर है. विद्यालय के भवन का भी हाल खराब है. क्योंकि दीवार कई जगह से गिर गई है.
दुर्ग की प्राथमिक शाला में 109 पद है जबकि हायर सेकेंडरी में 248 पदों में से पद भरने के बाद अभी 168 पद खाली है. सरकार इस पर काम कर रही है.- अरविंद मिश्रा, जिला शिक्षा अधिकारी, दुर्ग
गरियाबंद जिलान्तर्गत छुरा थाना क्षेत्र स्थित अकलवारा हायर सेकंडरी स्कूल के प्रिंसिपल पर गंभीर आरोप लगाते हुए छात्राओं ने आज स्कूल गेट पर ताला जड़ दिया. छात्राओं और उनके पालकों का आरोप है कि प्रिंसिपल ने न सिर्फ कई छात्रों को जानबूझकर फेल कर दिया बल्कि छात्राओं के साथ दुर्व्यवहार भी की है.
प्रदर्शन कर रहीं छात्राओं ने बताया कि शिकायत के बाद डीईओ गरियाबंद द्वारा जांच कमेटी गठित की गई थी, जिसमें आरोपों की पुष्टि भी हो गई. इसके बावजूद कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई. शाला विकास समिति के अध्यक्ष उदित सेन ने कहा, “स्कूल खुलते ही परिणाम में हेरफेर और छेड़छाड़ की शिकायत की गई थी. जांच में सब कुछ साफ़ हुआ, फिर भी प्रशासन चुप्पी साधे बैठा है.” छात्रा इसिका दत्ता और वासनी यादव ने बताया कि शिकायत के बाद कई बार उन्हें प्रताड़ित करने की कोशिश की गई. एक पालक राजकुमार ने कहा, “यह मामला बेहद गंभीर है. प्रशासन को तुरंत एक्शन लेना चाहिए था.” प्रदर्शनकारियों ने साफ कर दिया कि कार्रवाई होने तक वे स्कूल गेट से हटेंगे नहीं.सूचना मिलते ही बीईओ के एल मतावले मौके पर पहुंचे और अभिभावकों व छात्रों को समझाने का प्रयास किया, लेकिन प्रदर्शनकारी अपनी मांग पर अड़े रहे. बीईओ मतावले ने बताया कि “जांच की रिपोर्ट उच्च कार्यालय को भेजी गई है और आरोपों की पुष्टि हुई है. उच्च अधिकारियों के निर्देश पर उचित कार्रवाई की जाएगी.”

सरकार की तरफ से क्या है दावा ?: छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णु देव साय का यह दावा है कि हम शैक्षणिक विकास के लिए तेजी से काम कर रहे हैं. हालांकि इसके लिए छत्तीसगढ़ की सरकार ने शिक्षा के लिए अपने कुल बजट का 18.57 फीसदी रखा है. जो कई राज्यों की तुलना में ज्यादा है. लेकिन उसके बाद भी जो काम शिक्षा को लेकर होना चाहिए इसकी हकीकत बद से बदतर है. बदलाव की जिस बात को रखने के लिए बार-बार मंच सजता है और जिस पर कई तरह के वादे और दावे किए जाते हैं. हकीकत यही है कि शैक्षणिक व्यवस्था में अगर सुधार नहीं किया गया तो छत्तीसगढ़ को बदलने के लिए जिनके कंधों पर कल का भार आना है ,वह इसी दबाव में बिखर जाएंगे.
सरकारी दावा और युक्तियुक्तकरण: छत्तीसगढ़ में युक्तियुक्तकरण के पूर्व कुल 453 विद्यालय शिक्षक विहीन थे. युक्तियुक्तकरण हो जाने पर एक भी विद्यालय शिक्षक विहीन नहीं है. इसी प्रकार युक्तियुक्तकरण के पश्चात प्रदेश के 5936 एकल शिक्षकीय विद्यालयों में से 4728 विद्यालयों में शिक्षकों को पदस्थापित किया गया है. बस्तर एवं सरगुजा संभाग के कुछ जिलों में शिक्षकों की कमी के कारण लगभग 1208 विद्यालय एकल शिक्षकीय रह गये हैं.
शिक्षकों की कमी दूर करने की कवायद: निकट भविष्य में प्रधान पाठक एवं व्याख्याता की पदोन्नति तथा लगभग 5000 शिक्षकों की सीधी भर्ती के द्वारा शिक्षकों की कमी दूर हो जाएगी. शिक्षकों की कमी वाले विद्यालयों में इसकी पूर्ति कर दी जाएगी, जिससे कोई भी विद्यालय एकल शिक्षकीय नहीं रहेगा तथा अन्य विद्यालयों में भी जहां शिक्षकों की कमी है, शिक्षकों की पूर्ति की जाएगी. युक्तियुक्तकरण के बाद प्रदेश में 14768 शिक्षकों को नए स्कूलों में नियुक्त किया गया है. पहली बार शिक्षकों के लिए इतना बड़ा ट्रांसफर राज्य में किया गया है. इसमें राज्य स्तर के 105 संभाग स्तर के 868 और जिला स्तर पर 13795 शिक्षकों की पदस्थापना की गई है. राज्य में अभी भी 1207 ऐसे प्राइमरी स्कूल हैं. जहां पर केवल एक शिक्षक ही कार्यरत है. बात बस्तर और बीजापुर की करें तो यहां भी हालात ऐसे ही हैं.