April 30, 2024

जासूसी : देश में इजराइली सॉफ्टवेयर के जरिए 40 जर्नलिस्ट के फोन हैक हुए, केंद्र सरकार ने किया इनकार

नई दिल्ली/वॉशिंगटन। भारत में मंत्रियों, विपक्ष के नेताओं, पत्रकारों, लीगल कम्युनिटी, कारोबारियों, सरकारी अफसरों, वैज्ञानिकों, एक्टिविस्ट समेत करीब 300 लोगों की जासूसी की गई है। द वायर की रिपोर्ट के मुताबिक, इनमें से करीब 40 पत्रकार हैं। इन पर फोन के जरिए निगरानी रखी जा रही थी। वॉशिंगटन पोस्ट और द गार्जियन के अनुसार 3 प्रमुख विपक्षी नेताओं, 2 मंत्रियों और एक जज की भी जासूसी की पुष्ट हो चुकी है, हालांकि इनके नाम नहीं बताए हैं। इस जासूसी के लिए इजराइल के पेगासस स्पायवेयर का इस्तेमाल किया गया था।

पेगासस स्पायवेयर एक ऐसा कंप्यूटर प्रोग्राम है, जिसके जरिए किसी के फोन को हैक करके, उसके कैमरा, माइक, कंटेंट समेत सभी तरह की जानकारी हासिल की जा सकती है। इस सॉफ्टवेयर से फोन पर की गई बातचीत का ब्यौरा भी जाना जा सकता है।

इजराइल की कंपनी सरकारों को देती है पेगासस
पेगासस बनाने वाली कंपनी NSO ग्रुप का कहना है कि वह किसी निजी कंपनी को यह सॉफ्टवेयर नहीं बेचती है, बल्कि इसे केवल सरकारों को ही सप्लाई किया जाता है। ऐसे में सवाल खड़ा हो गया है कि क्या सरकार ने ही भारतीय पत्रकारों की जासूसी कराई?

भारत सरकार ने गैरकानूनी फोन हैकिंग से इनकार किया
द वायर की रिपोर्ट पब्लिश होने के तुरंत बाद केंद्र सरकार ने इस पर जवाब दिया कि उसकी ओर से देश में किसी का भी फोन गैरकानूनी रूप से हैक नहीं किया है। IT मिनिस्ट्री की तरफ से जारी चिट्ठी में कहा गया कि राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मसलों पर तयशुदा कानूनी प्रक्रिया का पालने करते हुए ही किसी का फोन टेप करने की इजाजत दी जा सकती है।

द वायर समेत दुनियाभर के 16 मीडिया संस्थानों की रिपोर्ट कहती है कि पेगासस स्पायवेयर के जरिए इंडियन एक्सप्रेस, हिंदुस्तान टाइम्स, न्यूज 18, इंडिया टुडे, द हिंदू, द वायर और द पायनियर जैसे राष्ट्रीय मीडिया संस्थानों में काम करने वाले पत्रकारों को टारगेट किया गया था। रिपोर्ट में कहा गया है कि 2017 से 2019 के बीच एक भारतीय एजेंसी ने 40 से ज्यादा भारतीय पत्रकारों की निगरानी की थी। 

साइबर सिक्युरिटी रिसर्च ग्रुप सिटिजन लैब की रिपोर्ट के मुताबिक, इसकी संभावना है कि कैंडिरू ने मिडिल ईस्ट और एशिया के देशों को जासूसी के उपकरण बेचे हैं। सिटिजन लैब ने ऐसे लोगों की पहचान की है, जो कैंडिरू के सॉफ्टवेयर का शिकार हुए और इसी आधार पर माइक्रोसॉफ्ट ने अपनी रिपोर्ट भी बनाई है। सरकारों ने इन उपकरणों का इस्तेमाल स्वतंत्र रूप से जासूसी के लिए किया।

पेगासस सॉफ्टवेयर ऐसे काम करता है
पेगासस के जरिए जिस व्यक्ति को टारगेट करना हो, उसके फोन पर एसएमएस, वॉट्सएप, आई मैसेज (आईफोन पर) या किसी अन्य माध्यम से एक लिंक भेजा जाता है। यह लिंक ऐसे संदेश के साथ भेजा जाता है कि टारगेट उस पर एक बार क्लिक करे। सिर्फ एक क्लिक से स्पाइवेयर फोन में एक्टिव हो जाता है। एक बार एक्टिव होने के बाद यह फोन के एसएमएस, ईमेल, वॉट्सएप चैट, कॉन्टैक्ट बुक, जीपीएस डेटा, फोटो व वीडियो लाइब्रेरी, कैलेंडर हर चीज में सेंध लगा लेता है।

क्रिमिनल हैकिंग का खतरा बढ़ा
ये रिपोर्ट उस वक्त सामने आई है, जब उन साइबर हथियारों को लेकर चिंता जाहिर की जा रही है जो कि पहले कुछ देशों तक ही सीमित थे। अब ये तेजी से बढ़ते जा रहे हैं। असहमति जाहिर करने वालों और विरोधियों की इस तरह की जासूसी से क्रिमिनल हैकिंग का खतरा भी बढ़ता जा रहा है। इनमें वसूली के लिए की इस्तेमाल किए जाने वाले कैंपेन भी शामिल हैं, जिसने हाल ही में अमेरिका में ऑयल सप्लाई और मीट प्रोडक्शन को बाधित कर दिया था।

रैनसमवेयर पर बाइडेन ने पुतिन को दी थी चेतावनी
इस तरह के रैनसमवेयर को लेकर हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने रूसी राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन को चेतावनी भी दी थी। उन्होंने कहा था कि वो अपने देश में बैठे क्रिमिनल ग्रुपों की पहचान करें, वरना नतीजे भुगतने होंगे। हालांकि, जासूसी उपकरणों की इंडस्ट्री को लेकर अमेरिका उतना ज्यादा आक्रामक नहीं दिखाई देता।

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