April 19, 2024

पूर्वोत्तर की बड़ी जीत ने 2024 के आम चुनावों के लिए बीजेपी को दिया ये 6 मंत्र

नई दिल्ली। बीजेपी के लिए 2024 की लड़ाई बहुत अहम है. आम चुनावों के पहले देश में होने वाला हर चुनाव लोकसभा चुनावों के लिए सेमीफाइनल है. पूर्वोत्तर में बीजेपी की जीत ने विपक्ष के लिए सबक छोड़ा है तो बीजेपी के लिए ऐसा ऑक्सिजन दिया है जो विपरीत परिस्थितियों वाले माहौल में चुनाव जीतने का जज्बा प्रदान करेगी. पूर्वोत्तर के चुनावों में बीजेपी के लिए कुछ भी फेवरेबल नहीं था. एंटी इंकंबेंसी, सीएए ही नहीं गैर हिंदू आबादी का बहुमत अपने आप में बीजेपी के लिए बहुत कठिन रास्ता था. फिर भी पार्टी को मिली बढ़त ये साबित करती है कि बीजेपी की रणनीति सही दिशा में चल रही है.

पूरे देश पर राज करने के लिए बहुतेरे धर्म-संप्रदाय, जाति और भाषा को लेकर अलग-अलग रणनीति के तहत पार्टी को काम करना होगा. त्रिपुरा- नागालैंड में मिली सफलता ने पार्टी को नए क्षेत्रों में अपनी पैठ बनाने के लिए कुछ नए फार्मूले दे दिए हैं. निश्चित है कि पार्टी इन्हें अगले चुनावों में जरूर आजमाएगी.

1). बीजेपी किसी खास धर्म और जाति की पार्टी नहीं है.
पूर्वोत्तर में बीजेपी की बड़ी जीत ने यह साबित कर दिया है कि पार्टी जरूर हिंदुत्व की बात करती है पर उसके लिए सभी धर्म बराबर हैं. 2024 जीत के लिए अगर उसे और उदार होना पड़ा तो वह ऐसा करेगी. देश के अल्पसंख्यकों में विश्वास जगाने के लिए कुछ भी कर सकती है. चूंकि गैर हिंदू वोटर्स भी पार्टी को वोट दे रहे हैं तो उनको साथ लेने के लिए बीजेपी भी उनके साथ कदमताल बढा़ सकती है.

2). बीजेपी को अव्यवहारिक गठबंधनों से फर्क नहीं पड़ता
त्रिपुरा में जिस तरह कांग्रेस और वामदलों का अव्यवहारिक गठबंधन फेल हुआ है उसे देखकर ऐसा लगता है कि 2024 में ऐसे गठबंधनों का मुकाबला करने के लिए पार्टी तैयार है. इसके पहले भी यूपी में सपा-बसपा के गठबंधन को पार्टी धूल चटा चुकी है. महाराष्ट्र और बिहार में हुए अव्यवहारिक गठबंधनों को त्रिपुरा चुनावों से सबक लेना होगा. बीजेपी समझ चुकी है कि जनता के बीच ऐसे गठबंधन के आगे उसे तनकर खड़ा रहना है.

3). मौका पड़ने पर अपने हार्डकोर सिद्धांतों से समझौता कर सकती है पार्टी
जिस तरह पूर्वोत्तर के बीजेपी नेताओं ने खुलेआम स्वीकार किया कि वे बीफ खाते हैं और बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व इसपर खामोश रहा, यह नजीर है कि आने वाले दिनों में पार्टी दूसरे धर्म, जाति और समुदायों को लेकर लिबरल रुख अपना सकती है. भारत शुरू से बहुभाषी, बहुसंस्कृति वाला देश रहा है. अकेले हिंदुओं में ही कितने तरह के नियम कानून हैं. उत्तर और दक्षिण भारत में बहुत कुछ बदल जाता है. आंध्र प्रदेश में हिंदुओं में मोस्ट फेवर्ड मैरेज मामा भांजी का माना जाता है. जबकि उत्तर भारत का हिंदू ऐसा सोच भी नहीं सकता है. बीजेपी को अगर कांग्रेस की तरह पूरे देश में कई दशक तक शासर करना है तो निश्चित रूप से पूर्वोत्तर की तर्ज पर बहुत मुद्दों पर आंख मूंदना होगा.

4). विकास का मुद्दा अगले चुनावों में भी कारगर रहेगा
पूर्वोत्तर में जीत का बहुत बड़ा कारण बड़े पैमाने पर विकास कार्यक्रम हैं. ताबड़तोड़ खुलते एयरपोर्ट, रेललाइनों से देश के दूसरे हिस्सों से जुड़ते पूर्वोत्तर के शहर, शानदार ग्रीनफील्ड एक्सप्रेसवे आदि ने पिछले कुछ सालों में पूर्वोत्तर को भारत में सही मायने में मिलाया है. इसके पहले सात दशकों तक पूर्वोत्तर देश के साथ होते हुए भी साथ नहीं था. जाहिर है कि विकास के ये मंदिर देश भर में दिखाई देने वाले हैं. मुंबई-दिल्ली एक्सप्रेसवे, बुलेट ट्रेन, एम्स-आईआईटी की बढती संख्या से देश को ऐसा लगता है कि देश में कुछ बदलाव हो रहा है. बीजेपी का डबल इंजन की सरकार का नारा भी इसमें कारगर रोल अदा करेगा.

5). चीन-पाकिस्तान के खिलाफ आक्रामक रवैया पड़ोसी राज्यों के लिए कारगर
पूर्वोत्तर में बीजेपी को मिल रही सफलता का एक कारण यह भी है कि भारत चीन के खिलाफ कड़ा स्टैंड ले रहा है. यहां के लोग देख रहे हैं कि सीमा पर लगातार सड़कें बन रही हैं. तमाम खतरनाक समझे जाने वाले हथियारों की तैनाती सीमा पर स्थिति सैन्य अड्डो पर हो रही है. पूर्वोत्तर के लोगों को यह लगता है कि चीन का मुकाबला केवल बीजेपी वाली सरकार ही कर सकती है. इसी तरह देश के अन्य हिस्सों में सीमावर्ती राज्यों की जनता भी यही सोचती है. बीजेपी सरकार सीमा पर ऐसे योजनाओं को और बढा सकती है. पाकिस्तान और चीन के खिलाफ कड़ा स्टैंड जारी रखकर सीमावर्ती राज्यों में पार्टी अपने पक्ष में माहौल बनाए रखेगी.

6). स्थानीय नेतृत्व की जरूरत नहीं मोदी अकेले काफी हैं
पूर्वोत्तर जैसे छोटे-छोटे राज्यों में अगर पार्टी बिना चेहरे के चुनाव लड़कर अपने वोट प्रतिशन बढ़ोतरी करा रही है तो यह तय है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का चेहरा अकेले काफी है चुनाव जिताने के लिए. इसके पहले भी जिन राज्यों में पार्टी ने चेहरे बनाकर उनके नाम पर चुनाव लड़े हैं वहां पर भी चुनाव कमान नरेंद्र मोदी के ही हाथ में रहा है. उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में जहां योगी आदित्यनाथ जैसा ताकतवर चेहरा मुख्यमंत्री के लिए प्रस्तावित था वहां भी अंत समय तक पीएम मोदी ने लगातार रैलियां करके चुनाव को अपने पक्ष में मोड़ लिया था. पूर्वोत्तर में मिली जीत भी अकेले मोदी की ही जीत है. पीएम मोदी ने केंद्र में सत्ता संभालने के बाद पूर्वोत्तर की करीब 50 से अधिका यात्राएं की हैं. चुनाव में भी उन्होंने लगातार रैलियां की हैं.

error: Content is protected !!