April 28, 2024

Adipurush Review : दुविधा में दोनों गए मनोरंजन मिला न राम, नाटकीय संवादों ने छीन ली रामकथा की सहजता

बहुत कठिन होता है, कठिन समय में भी सहज रहना। सरल बने रहना उससे भी दुष्कर है। विशेषकर तब जब पिता राजा रहा हो। भाई हर बात मानने को तैयार रहता हो और पत्नी का सुख इसी में हो कि वह वहीं रहे जहां पति की छाया रहे। राम कथा मनुष्य को सहज होना सिखाती है। ये यह भी सिखाती है कि तमाम धन संपत्ति, सुख, ऐश्वर्य आदि पाकर भी सरल बने रहना हो तो इसकी कुंजी कहां है। कुंजी है, समदरसी इच्छा कछु नाहीं, हरष सोक भय नहीं मन माहीं। लेकिन, सिनेमा को अब सरलता की मुंडेर भी हासिल नहीं है। वह इसी मुंडेर पर बैठा कौआ बन चुका है, जिसे दादी बचपन में इस आस से दिन भर उड़ाया करती थीं कि शायद उसका कांव कांव करना किसी आने वाले की सूचना ही हो। निर्देशक ओम राउत की नई फिल्म ‘आदिपुरुष’ भी मुंडेर पर से आने वाली ऐसी ही एक आवाज है। ये राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान और रावण की कहानी नहीं है, ये कहानी उन्होंने राघव, जानकी, शेष, बजरंग और लंकेश की बुनी है। इंटरवल तक ही फिल्म सुंदरकांड पार कर जाती है और उसके बाद का लंका कांड अपने आप में किसी कांड से कम नहीं है।

राम की पारंपरिक छवि नहीं
सिनेमाई छूट के सहारे पौराणिक कथाएं कहने का इतिहास भारत में भी सिनेमा जितना ही पुराना है। पहली राम कथा जब परदे पर उतरी तो राम और सीता दोनों के किरदार एक ही कलाकार ने निभाए। राम की सौम्यता की झलक वहीं से निकली। तेलुगू में बनी रामकथा में राम मूंछों के साथ नजर आए और अब तेलुगू के तथाकथित सुपर सितारे प्रभास जब अपनी नई फिल्म के साथ सिनेमाघरों तक पहुंचे हैं तो वह मूंछों वाले राम ही बने हैं। राम को जिस दिन राजा बनना था, उसका मुहूर्त नक्षत्रों की गणनाएं करके ही निकाला गया। गुरु वशिष्ठ जैसे ज्ञानी ने ये मुहूर्त निकाला लेकिन वही मुहूर्त राजा दशरथ के मरण और राम के वनवास का कारण बना। राम कथा ऐसी ही छोटी छोटी अनुभूतियों की कहानी है। ये अनुभूतियां कभी केवट प्रसंग में दिखती हैं, कभी शबरी के जूठे बेरों में तो कभी राम और हनुमान के मिलन में। दुश्मन सेना में आकर मरणासन्न की चिकित्सा करने वाले सुषेण वैद्य का प्रसंग विस्तार में देखे तो बड़े सामाजिक प्रभाव वाला है, लेकिन जिस सामाजिक समरसता का पाठ राम ने पढ़ाया, वे यहां उनके पराक्रमी प्रचार के प्रपंच में खो गए हैं।

पुरुषोत्तम के आदिपुरुष बनने की कहानी
फिल्म ‘आदिपुरुष’ में जब राम कहते हैं, ‘जानकी में मेरे प्राण बसते हैं लेकिन मर्यादा मुझे प्राणों से भी प्यारी है।’ तो बस ये एक लाइन का प्रसंग है राम को मर्यादा पुरुषोत्तम सिद्ध करने का जहां वह रावण से युद्ध करने के लिए अयोध्या की सेना नहीं चाहते हैं। लेकिन, राम कथा के ऐसे ढेरों प्रसंग है जो त्रेता युग के पुरुषोत्तम को आदिपुरुष बताए जाने का फिल्म बनाने वालों का दावा मजबूत करने में उनकी मदद कर सकते थे। छोटा भाई जब हमेशा भाभी मां की सेवा औ रक्षा में ही तत्पर रहता हो तो ऐसे में बड़ा भाई अपनी पत्नी के साथ रूमानी होने का समय भी निकाल पाएगा। सोचना मुश्किल है। लेकिन फिल्म टी सीरीज की है तो अरिजीत सिंह का गाना होना ही है और गाना होना है तो फिर कबीर सिंह हो या राघव फिल्म बनाने वालों का क्या फर्क पड़ता है।

संवादों की अतिनाटकीयता की शिकार
संगीत और इसके गीतों के साथ ही इसके संवाद भी फिल्म ‘आदिपुरुष’ की बड़ी विफलता है। इस तरह की कथाओं के लेखन में जो सहजता और सरलता विचारों की चाहिए, वह इसके संवादों में है नहीं। हालांकि, संवाद लिखने वाले मनोज मुंतशिर अब शुक्ला भी हो चुके हैं लेकिन राम कथा की मानवता का ध्यान रखने में वह चूक गए हैं। फिल्म देखने के बाद ये भी समझ आता है कि फिल्म के टीजर को लेकर मचे हो हल्ले के बाद ओम राउत ने इसमें कोई खास फेरबदल किया नहीं है। टीजर में दिखे सारे ग्राफिक्स, सारे स्पेशल इफेक्ट्स और सारे किरदार हू ब हू यहां उपस्थित हैं। इस चक्कर फिल्म भी जरूरत से कहीं ज्यादा लंबी हो गई है।

सीता-राम से जानकी-राघव तक
प्रभास, कृति सैनन और सनी सिंह स्टारर फिल्म ‘आदिपुरुष’ की तुलना इसके पहले हिंदी में रिलीज हो चुकी राम कथाओं, खासकर रामानंद सागर के धारावाहिक ‘रामायण’ से जरूर होगी और जब जब ये तुलना होगी, सबसे पहली खामी जो इस फिल्म की लोगों को दिखेगी, वह है फिल्म में जानकी बनीं कृति सैनन। उनके चेहरे पर जो भी कृत्रिम प्रयोग हो चुके हैं, उन्होंने उनके चेहरे की सौम्यता हर ली है। होंठ और नाक उनके तीखे बनाए गए हैं। और, मिथिला की राजकुमारी के जिस सौंदर्य को देख राम पुष्प वाटिका में मोहित हुए, उसकी छटा तक कृति सैनन की सुंदरता में नजर नहीं आती। यही हाल प्रभास का है। हिंदी में शरद केलकर की आवाज पर रिवर्ब लगाकर वह राम जैसा आभास तो गए, पर उनके शरीर सौष्ठव में न राम जैसा ओज है, न राम जैसा तेज और न ही राम जैसा प्रताप। वह पूरी फिल्म में ‘बाहुबली’ की तीसरा संस्करण ही ज्यादा नजर आए।

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