April 25, 2024

‘3 सालों से चला आ रहा रिश्ता एक रात में कैसे टूटा?’ SC की सुनवाई में राज्यपाल के रोल पर CJI ने पूछा…

नई दिल्ली। तीन सालों तक रिश्ता अच्छे से चलता रहा और अचानक एक रात में रिश्ता टूट गया? शिंदे गुट के विधायक तीन साल तक मंत्रीपद का आनंद उठाते रहे और अचानक 34 विधायकों ने राज्यपाल को अचानक पत्र क्यों लिख दिया? राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने इस पत्र के आधार पर बहुमत परीक्षण करवाने का फैसला कर लिया? उन्होंने ऐसा इसलिए किया क्योंकि वे ठाकरे सरकार को गिराना चाहते थे. इन शब्दों में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश धनंजय चंद्रचूड़ ने महाराष्ट्र में शिंदे-ठाकरे विवाद पर राज्यपाल की भूमिका पर सवाल उठा दिए.

मुख्य न्यायाधीश ने राज्यपाल की भूमिका पर सवाल करते हुए कहा कि वे चाहते तो 34 विधायकों के पत्र को शिवसेना का अंदरुनी सवाल मान कर उसे नजरअंदाज कर सकते थे. उन्हें यह विचार करना चाहिए था कि इन विधायकों ने तीन सालों में एक भी पत्र नहीं भेजा और अचानक एक के बाद एक छह पत्र भेज रहे हैं. एक रात में सब कुछ कैसे बदल रहा है?

एक तरह से राज्यपाल शिवसेना को तोड़ने में भागीदार?
मुख्य न्यायाधीश ने कहा, ‘बहुमत परीक्षण के आदेश मात्र से सरकार गिर सकती है. राज्यपाल का कार्यालय इसकी वजह ना बने, इसका खयाल रखना चाहिए था. राज्यपाल को ऐसा लगा कि शिवसेना के एक गुट में आघाड़ी के साथ सरकार चलाने को लेकर नाराजगी है. लेकिन सिर्फ इस आधार पर राज्यपाल बहुमत परीक्षण का आदेश दे सकते हैं क्या?यानी एक तरह से वे पार्टी तोड़ने का काम कर रहे थे.’

‘महाराष्ट्र जैसे सुसंस्कृत राज्य में ऐसी घटनाएं शोभा नहीं देतीं’
मुख्य न्यायाधीश ने कहा, ‘महाराष्ट्र एक राजनीतिक रूप से सुसंस्कृत राज्य है. ऐसी घटनाएं होती हैं तो इससे कलंक लगता है. राज्यपाल ने दो चीजें ध्यान में नहीं रखीं. एक, कांग्रेस-एनसीपी में कम से कम मतभेद नहीं थे. दोनों के 97 विधायक हैं. उनका एक बड़ा हिस्सा था. शिवसेना के 56 में से 34 ने अपने पत्र में अविश्वास दर्शाया था. अगर एक पार्टी में मतभेद था भी बाकी दो पार्टियां आघाड़ी में मजबूती से कायम थीं. राज्यपाल इसे एक पार्टी का अंदरुनी मसला भी तो मान सकते थे?’

राज्यपाल की भूमिका पर उठे सवाल के ये दिए गए जवाब
लंच के पहले हुई सुनवाई में मुख्य न्यायाधीश द्वारा उठाए गए इन सवालों का जवाब राज्यापाल का पक्ष रखने के लिए खड़े हुए वकील तुषार मेहता ने लंच के बाद दिया. तुषार मेहता ने कहा कि राज्यपाल की भूमिका पर कोई सवाल नहीं किया जा सकता. उद्धव ठाकरे ने फ्लोर टेस्ट को फेस ही नहीं किया. इससे साफ होता है कि उनके पास बहुमत नहीं था. ऐसे में बहुमत का परीक्षण करवाना राज्यपाल का अधिकार है. वकील तुषार मेहता ने कहा कि विधायकों ने अपने पत्र में साफ कहा था कि वे सरकार से अपना समर्थन वापस ले रहे हैं. ऐसे में राज्यपाल बहुमत परीक्षण नहीं करवाते तो क्या करते?

आगे तुषार मेहता ने कहा कि विधायकों को मारने की धमकी दी जा रही थी. इसके सबूत मौजद हैं. ऐसे में राज्यपाल चुप बैठे हुए नहीं रह सकते थे. राज्यपाल ने नियमों से बाहर जाकर कुछ भी नहीं किया. उन्होंने जो किया वो अपने विशेषाधिकार का इस्तेमाल करते हुए किया.

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